Friday 15 November 2013

गलती + दोस्ती = A Weird Scenario !

परसों ही तो हम मिले थे, कल ही तो हमने एक दूसरे को समझना शुरू किया था |
दोस्‍ती तो अभी शुरू ही हुई थी, अभी कुछ दिन पेहले ही तो लड़ना शुरू किया था |
क्या इतनी नाज़ुक था वो धागा ज़ो की दो गलतियों से टूटने सा लगा?
क्या इतना नाजुक था वो वादा जो सिर्फ दो हफ्तों में बिखरने सा लगा? 
गलतियाँ करते हुए ही तो दोस्‍ती बढ़ती है, एक दूसरो को समझाने से ही तो ये पक्की होती है |
कल तक जो कि सबसे पास था आज शायद उससे ही बात नहीं होती,
कहा दिन में ३-४ बार गुफ्तगुं होती थी, अब हफ्तो में इतनी नहीं होती |
लोग केहते है मुझसे कि जिसे कोई फर्क नहीं पड़ता उसके लिये क्यूं मेहनत करते हो ?
जहां कोई राह नहीं, उस रास्ते पे क्यूं ही चलते हो ?
केह्ता हूँ मैं कि सच्चे दोस्त यूहीं रोज़ नहीं मिलते, साथ में मेरी तरह पागल का कॉम्बो तो definitely rare है |
माना की गलती हुई है और शायद दो तीन बार हुई है पर कभी मेरी जगह आके तो देखो, समझ जाओगे की वज़ह क्या थी |